बच्चों को चपेट में ले रही है ये बीमारी, 2050 तक आधी दुनिया हो सकती है इसकी शिकार

बच्चों को चपेट में ले रही है ये बीमारी, 2050 तक आधी दुनिया हो सकती है इसकी शिकार

सेहतराग टीम

बच्चों के जरूरी है कि वह पढ़ाई और खेल-कूद में एक संतुलन बनाए रखें। ऐसे में अगर आपके बच्चे लगातार पढ़ाई कर रहे हैं या इंडोर गेम्स खेल रहे हैं, तो उनके आंखों की रोशनी जा सकती है। ये बात हम नहीं कह रहे बल्कि हाल ही में हुई एक स्टडी बता रही है। इस स्टडी की मानें तो रोजाना दो घंटे घर के बाहर, नेचुरल लाइट में नहीं रहने वाले बच्चे दृष्टिहीन हो सकते हैं। दरअसल लगातार स्क्रीन के सामने बैठे रहने और किताबों से चिपके रहने के कारण बच्चों में 'स्कूल-मायोपिया' नाम की आंखों से जुड़ी बीमारी फैल रही है। शोधकर्ताओं के अनुसार, बच्चों और युवाओं में यह 'स्कूल मायोपिया' एक महामारी की तरह फैल रही है। ऐसा सिर्फ इसलिए हो रहा है क्योंकि वह बचपन से ही एक गलत जीवनशैली के आदि हो गए हैं। शोधकर्ताओं की मानें तो बच्चों में कम उम्र में दृष्टिहीनता की परेशानी बढ़ रही है और जैसे-जैसे वह बड़े होंगे, परेशानी बढ़ेगी और वे पूर्ण रूप से अंधे हो सकते हैं।वहीं कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, लगभग 2050 तक लगभग 50 प्रतिशत लोग इस मायोपिया के शिकार हो सकते हैं।

क्या है 'स्कूल मायोपिया'?

गॉलवे यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के एक ऑप्टोलॉजिस्ट डॉ. क्लेर क्विग्ले ने नौ साल के 8,568 बच्चों की जीवनशैली और उनके स्वास्थ्य की स्टडी की। स्टडी के दौरान उन्होंने पाया कि बच्चों में आंखों की समस्या और खराब जीवन शैली के बीच के मजबूत संबंध है। डॉ क्विगले के अनुसार 'स्कूल मायोपिया' के विकास में लगातार दिखाई देने वाले कारक शिक्षा है और घर के अंदर ज्यादा समय बिताना। जबकि मायोपिया को सबसे लंबे समय तक एक सामान्य स्थिति के रूप में देखा गया है। दरअसल स्कूल मायोपिया बच्चे और युवाओं में फैल रही आंख की परेशानी है, जिसके कारण धीरे-धीरे वह पूरी तरह से अंधे हो रहे हैं। शोध ने बताया गया है कि बच्चों में 'नियरवर्क' यानी कि कम दूरी से किए कार्य और ऐसी गतिविधियाँ - जैसे पढ़ना, अध्ययन करना (होमवर्क करना, लिखना) और कंप्यूटर पर काम करना इसके मुख्य कारणों में शामिल है।

इसके अलावा, इंटरनेशनल मायोपिया इंस्टीट्यूट के एक शोध पत्र में पाया गया कि निकटवर्ती यानी कि नियरसाइटेडनेस से प्रत्येक घंटे में मायोपिया की संभावना 2 प्रतिशत बढ़ गई। विशेष रूप से, मायोपिया या निकट-दृष्टि आंख से जुड़ी परेशानी है, जहां प्रकाश रेटिना के सामने केंद्रित होता है बजाय इसके कि वह उस सीधे रेटिना पर केन्द्रित हो। इसके कारण हमें सब धुंधला दिखाई पड़ता है, जबकि निकट की वस्तुएं सामान्य दिखाई देती हैं।

ऐसे बच्चों अक्सर सिरदर्द की शिकायत करते हैं, और अपनी आंखों के ठीक ऊपर किताबों को किताबों को रख कर पढ़ते हैं। इसलिए शैक्षिक स्तर और शोधकर्ताओं ने प्राकृतिक रौशनी में हूी पढ़ने और लिखने को कहा है। पिछले 10 वर्षों में किए गए अध्ययन इस बात का पता चलता है कि आप आप अपने बच्चों को घर के बाहर खलने-कूदने और पढ़ने के लिए प्रेरित करें। एक ऑस्ट्रेलियाई समीक्षा में यह भी पाया गया कि जिन बच्चों ने बाहर समय बिताया, उनमें स्पष्ट रूप से कम दृष्टिदोष का खतरा था। हालांकि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की एक समीक्षा में पाया गया कि मायोपिया से पीड़ित बच्चे प्रति सप्ताह लगभग 3 घंटे ही घर या स्कूल के बाहर बिताते हैं। इस बीच, ताइवान में एक अध्ययन में पता चला है कि प्रतिदिन 80 मिनट घर के बाहर खर्च करने से आपकी आंखों का स्वास्थय अच्छा रहता है। इसलिए, अपने बच्चों को बाहर खेलने-कूदने और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

(साभार: दैनिक जागरण)

 

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